RAMAYANA KAL KA EK ADBHUT SACH रामायण काल का एक अद्भुत सच A RELIGIOUS STORY

12 कलाओं से युक्त भगवान श्रीराम के गुणों का वर्णन करना मनुष्य के वश की बात नहीं ।  वेद वेदांत, उपनिषद जिनका पूर्ण वर्णन करने में  अस्मर्थ रहे ,ऐसे प्रभु श्री राम जिनके कारण 16 कलाओसे युक्त भगवान श्रीकृष्ण को  पृथ्वी पर अवतार लेना पड़ा ।ऐसी ही एक लधु  कथा जो भगवान श्रीराम के गुणों एवं चरित्र का वर्णन करती है।   



                           ऋषि विश्वामित्रअपने कई शिष्यो के साथ वन के आश्रम में   पुजा पाठ में लीन थे ।ऋषियो   का देखा जाय  तो वह बाहर से जितना कठोर होते हैं अन्दर से  उतना ही कोमल होते हैं । ना उन्हे किसी बात का डर होता है   कोई उनकी दिनचर्या मेें किसी तरह की  बाधा  डालने की कोशिश करेें तो वे पसंद नहीं करते । वे  बहुत ही शांतिपूर्ण ढंग से रहने के आदी होते हैं ।पर उन्हें कोई अकारण परेेेेशान  करता है तो वह इस बात को सहजता से स्वीकार नहीं करते ।उसे समूल   नष्ट करने की सोच लेते हैं।ऐसी ही मन: दशा से ऋषि  विश्वामित्र  गुजर रहे थे ।            राक्षसी ताड़का के अत्याचार  से सारा वन  अशाांत  हो गया था ।वह अपने सहयोगियों के साथ आती और आश्रम की शांति में बाधा डालती । वह वन के जिस क्षेत्र में जाती , उसके भय से   उस  क्षेत्र के पशु पक्षी भी अपना क्षेत्र  छोड़ कर  दु सरे क्षेत्र में चले जाते ।वन में  एक छत्र राज करते करते उसका दु:साहस इतना बढ़ गया था कि वह ऋषियो को भी डराने-धमकाने लगी । उनके पुजा  पाठ में बिघ्न डालने लगी । तब ऋषि विश्वामित्र ने तंग आकर उससे निजात पाने का स्थाई उपाय सोचने लगे ।उस वक्त अयोध्या के राजा महाराज दशरथ चक्रवर्ती राजा थे ।उनके राज्य में प्रजा सुखी जीवन जी रही थी । ऋषि विश्वामित्र जानते थे  कि महराज दशरथ प्रतापी राजा हैं ,वे हमारी मदद जरूर करेंगे ।राजा दशरथ ने देवासूर संग्राम के दौरान जिस वीरता का परिचय दिया था उससे कोई भी अनभिज्ञ नहीं था । उन्होंने अयोध्या जाने का निर्णय लिया ।                                    जब  ऋषि विश्वामित्र अपने शिष्यों के साथ  अयोध्या पहुंचे तो वहां  उनका स्वागत वैधानिक रीती रिवाज द्वारा किया गया ।आव भगत करने के बाद राजा महाराज दशरथ ने आग्रह पूर्वक ऋषि विश्वामित्र से आने का कारण पूछा । ताडका के अत्याचार से त्रस्त ऋषि विश्वामित्र ने अपनी सारी  व्यथा  सुनाई  ।उनके इस ब्यथा को सुनकर राजा दशरथ ने उन्हें मदद करने का आश्वासन दिया । और सैनिकों को यह  आदेश दिया कि मेेरा   जाने का उचित प्रबंध किया जाय ।मैैं ऋषि विश्वामित्र की सेवा में जाना चाहता हूं ।पर ऋषि विश्वामित्र ने उन्हें आने से मना कर दिया। तब राजा दशरथ ने  कहा " ऋषि वर हमसे  कोई भुल तो नहीं हुई जो आप हमसे आपकी सेवा के लिए मना कर रहे हो। " "नहीं राजन आप से तो कोई भूल हो ही नहीं सकती । मैैं तो केवल इतना  चाहता था कि आप यदि कुमार राम और कुमार लक्ष्मण को मेेेरे साथ भेेज देते तो मेरा काम भी हो जाता और मुझे इनका गुुुरू  स्थान पद पाने का गौरव भी प्राप्त होता । "                                       तब महाराज दशरथ ने विनय पुर्वक कहा  " ऋषिवर आप तो जानते ही हैं कि वे  सुकुमार बालक है कभी वन प्रदेश  देखा भी नहीं  इतने भयानक राक्षस  राक्षसियो से कैसे युद्ध  करगे ।" तब  ऋषि विश्वामित्र ने कहा "राजन आप व्यर्थ में चिंता करते हो ये आपके  चारों पुत्र  कोई साधारण बालक नहीं है  , पूर्व काल में मेरे गुरु भगवान भोलेनाथ ने कहा था  कि अतीत के गोद में एक ऐसी घटना घटेगी  और उसका सामाधान स्वयं भगवान विष्णु करेंगे । आप के किसोर  बालक कुमार राम विष्णु के अवतार हैं।उनका कोई भी   अ हित नहीं कर सकता ।आप निश्चित होकर कुमार राम और कुमार लक्ष्मण को मेरे साथ भेज दिजीए ।" राजा दशरथ  कुछ संकोच करते कि, उनके कुल गुरू महृषि वशिष्ठ ने समझाते हुए कहा  "ऋषिवर   सत्य कह रहे हैं कुमार राम सहित  तीनों भाई   कोई साधारण बालक नहीं है । पृथ्वी पर अत्याचारियो के दमन के लिए ही इनका अवतार हुआ है ।आप निश्चित होकर ऋषि विश्वामित्र की बा त मान लिजिए इससे आपके  कुल का मान बढ़ेगा ।                               बहुत कुछ कहने सुनने के बाद राजा दशरथ ने अपने दोनों   कु मारो  कुमार राम और कुमार लक्ष्मण को ऋषि विश्वामित्र के साथ जाने की अनुमति दे दी ।जब वे दोनों कुमारों को लेकर अपने आश्रम पहुंचे तो आश्रमवासियों ने दोनों कुमारों का भव्य स्वागत किया। कुुमार राम और कुमार लक्ष्मण दोनों की जोड़ियां इतनी  मन मोहक थी कि जो उन को देखता बस देखते ही रह जाता । भगवान राम तो ऐसे दिख रहे थे जैसे सैकड़ों कामदेव एक मनुष्य के अन्दर  समाहित हो गये हो ।कमल के पंखुड़ियों जैसे नेत्र, चेहरे  पर शांत सागर जैसा  शांत भाव ,और मेघों जैसा श्याम  काया  ,शेर जैसी पतली कमर और चौड़ी  छाती एक ऐसा तेेेजस्वी रूप जिसे देखकर कोई भी आकर्षित  हो जाएं । भगवान श्री राम के दर्शन पाकर आश्रमवाासी अपने को धन्य समझने लगे ।            ‌‌‌‌         कुछ दिन बाद ऋषि विश्वामित्र ने उन्हें कई तरह का  ज्ञान और  दिव्य  अस्त्र शस्त्र  दिया ।करूणा के सागर भगवान श्री राम के गुरू  स्थान का पद  पा कर ऋषि विश्वामित्र  अपने आपको भाग्यशाली समझने लगे ।  वे सोच रहे थे कि जन्म जन्मांतर तक कठोर तपस्या के बाद भी जिनका दर्शन दुर्लभ है।वो भगवान श्रीराम सुकुमार बालक के रूप में मेेेरे सामने है।जरूर यह मेेेरे कई जन्मो के पुण्य का फल है या मेरे पूर्वजों के कर्मों का फल है ।जो मुझे इतनी सहजता से मील रहा है । फिर आया वो दिन जिसका सबको इंतजार था ।अपने सहायकों को साथ लेकर विशालकाय और भयंकर रूप वाली राक्षसी ताड़का कुछ पेड़ो को उखाडती,  कुछ को अपने पैरों के प्रहार से तोड़ती चली आ रही थी।  उसके आने का संकेत पाकर पशु पक्षी भी रास्ता बदल देते  । हवाएं  भी विपरीत दिशा में बहने लगती ।                                      राक्षसी ताड़का के आने का संकेत पाकर ऋषि विश्वामित्र ने भगवान श्री राम को सचेत कर दिया ।  थोड़ी देर बाद राक्षसी ताड़का  पेड़ों को उखाड़ कर आश्रम में फेकने लगी  । तब भगवान श्री राम ने एक ऊंचे पहाड़ पर चढ़ कर   उसको युद्ध के लिए ललकारा । और इस तरह माहौल ने एक   युद्ध का रूप ले लिया ।  दोनो तरफ से भयंकर युद्ध होने लगा । बाणों की वर्षा होने लगी । भगवान श्री राम ने देखा कि  इन साधारण बाणों से इसका कुछ भी नहीं होने वाला तो क्रोध में आकर उन्होंने दिव्य अस्त्र का प्रयोग   शुरू कर दिया ।   क्रोध से उनके दोनों नेत्र लाल हो गए जिस शीला पर  खड़ा हो कर  भगवान श्री राम  ने युद्ध किया  उस शीला (पत्थर) पर भगवान के पग चिन्ह उतर गए   जैसे गीली मिट्टी में पैर रखने पर पग चिन्ह उतर जाते हैं। भगवान के दिव्य बाणों   द्वारा राक्षसी ताड़का की जीवन लीला समाप्त हो गई। चारों तरफ वातावरण  शांत हो गया । हवाएं अपनी दिशा में बहने लगी । आकाश से देवताओं ने फूलों की वर्षा की ।                                                  ‌       ‌‌‌भगवान श्रीराम के इस पावन और प्रथम युद्ध  की वह शीला आज भी सुरक्षित है ।बिहार प्रांत के आरे जिला के  एक  प्रसिद्ध नगर बक्सर में इस शीला को  एक विष्णु मंदिर का रूप दे दिया गया है । लाखों श्रद्धालु आज भी भगवान के श्री चरणों  का दर्शन करने आते हैं ।                           दोस्तों यह कहानी कैसी लगी कमेंट बॉक्स में दो शब्द जरूर लिखें ताकि हमारा मनोबल बढ़ सके । और अपने दोस्तों को शेयर जरुर करे।  धन्यवाद लेखक----भरत गोस्वामी

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