LEELA MAHADEV KI लीला महादेव की A RELIGIOUS STORY

भगवान भोले नाथ देवों के देव महादेव हैं । सारी श्रृष्टि के मालिक  होते हुए भी वे सभी वैभव से कोसो दूर,उनकी एक अलग ही दुनिया है । न ढंग के वस्त्र,ना ही ढंग का रहन सहन, कन्द्रा और पहाड़ में निवास करने वाले, फिर भी मन इतना शांत  की किसी भी वस्तु के लालच से कोसो दूर, हमेशा मंद मंद  मुस्कान वाले हमारे भगवान श्री महादेव जी की एक अद्भुत लीला  का वर्णन इस कहानी में पढ़ने को मीलेगा ।                                                एक समय
 माता पार्वती, माता  लक्ष्मी के यहां किसी उत्सव में आमंत्रित  थी ।उनके यहां धन ,वैैैभव , ऐश्वर्य,  महल को देख कर   माता पार्वती बहुत प्रभावित हुई । स्वर्ग जैसा  महल ,उसमे  सजाई गई अनेक वैभवशाली वस्तुएं,मनमोहक खुशबू से भरा   वातावरण ,अनेक  प्रकार की सजावट देख कर माता पार्वती के मन में भी ऐसे ही महल में रहने की इच्छा प्रकट हुई ।उत्सव खत्म हो ने के बाद माता पार्वती  भगवान श्री महादेव जी के साथ कैलाश वापस लौट आयी ।वे जबसे  उत्सव से लौट कर आयी तबसे उनका    मन  शान्त नहीं था । वह निरंतर  सोच रही थी कि कैसे अपने  स्वामी श्री महादेव जी के सामने अपनी इच्छा प्रकट करूं । उनको अच्छा  लगेगा या बूरा। मन ही मन सकुचाते माता पार्वती इसी उधेड़बुन में उदास रहने लगी ।                                               भगवान श्री महादेव जी तो  अंतर्यामी  है । वे माता पार्वती के मन की बात को समझ गये थे । उन्होने माता पार्वती से उनके उदास हो ने का कारण पूछा ।पहले तो माता  पार्वती ने अनेक प्रकार की आनाकानी की पर अन्त में  उन्होंने महादेव जी के सामने अपनी इच्छा प्रकट कर दिया । भगवान भोले नाथ समझ गये   पार्वती के मन में लोभ ने अपना  घर  बना लिया है यह कुछ ना कुछ  अनर्थ कर के  ही शान्त हो होगा  । भगवान महादेव जी ने  अनेक प्रकार से माता पार्वती को समझाने की कोशिश की पर वे अपनी जीद   पर अड़ी रही । भगवान श्री महादेव जी ने माता पार्वती से कहा कि "  प्रीये  पार्वती हम जिस मुकाम पर हैं।हमे सदैव सबसे नम्र और  निम्न रहना चाहिए ।यह संसार एक  सागर के समान है जिसके हम रचयिता हैं ।इसमे अनेेक तरह के जीव,जंतु और प्राणी है जो एक तरह का जीवन जीने में असर्मथ है । विभिन्न तरह के उनके क्रिया कलाप  होंगे । विभिन्न प्रकार के उनके रहन सहन होंगे ।उनमे वहीं  सुखी रह सकता है जो इन चार  अवगुणों  काम, क्रोध,मद ,लोभ से दूर होगा । वहीं सुखी होगा ।                               ये  चारो अवगुण प्राणी को इतना   उपर  ले जाते हैं   कभी इतना नीचे गिरा देते हैं कि प्राणी कभी  भी  संभल नहीं पाता है। इनसे अच्छा उनका जीवन है जो प्राणी  इनके चक्कर से दूर है। उन्हें ना बड़ा होने की खुशी  है नाही छोटा होने का ग़म ।इस लिए देवता,दानव  और मनुष्य को इन चार अवगुणों से दूर रहना चाहिए। भगवान श्री महादेव जी का  इशारा माता पार्वती  की तरफ था ।शायद   माता पार्वती  उनका इशारा समझ   जाती । पर माता पार्वती अपनी जीद पर अड़ी रही । आखीरकार भगवान श्री महादेव जी  को देव शिल्पी श्री विश्वकर्मा जी को बुलाना पड़ा।उन्होने उनसे कहा "पार्वती के लिए एक ऐसा  महल बनवाइये  जैैैसा महल  आज तक किसी ने बनवाया ना हो । " श्री विश्वकर्मा जी "जो आज्ञा कह कर चले गए" ।उन्होंने समुद्र के बीच में एक ऐसा महल तैयार किया जो पूरा सोने का था । अब भगवान श्री महादेव जी ने माता पार्वती को महल दिखाया । मन के मुताबिक महल देख  कर माता पार्वती बहुत खुश हुई ।अब गृह प्रवेश की प्रक्रिया शुरू हो ने लगी ।देेव,दानव,  सभी को आमंत्रित किया गया।महल  को  बहुत ही विशेष रूप से सजाया गया। उत्तम बाह्मणो से पूजा अर्चना कराई गई । पर प्रकृति को कुछ और ही मंजूर था ।माया से मोहित ब्राह्मण ने   दक्षीणा में  महल  ही  मांग लिया।माता पार्वती बहुत ही नाराज हुई । पर परिस्थिति को घ्यान में रखते हुए उन्होंने अपने आप को संभाल लिया।और एक गहरी सांस ली । भगवान श्री महादेव जी के कहे हुए वो  शब्द उनके कानों में गूंज  रहे थे ।उनहोने मुस्कुराते हुए  भगवान श्री महादेव जी की तरफ देखा ।अभी भी उनके कानों में  इन शब्दो की गुंज आ रही थी ।  " हर प्राणी को इन चार अवगुणों से दूर रहना चाहिए । ये चारों प्राणी को कभी उपर ले जाते हैं । कभी इतना गीरा देते हैं कि प्राणी संभल नहीं पाता ।और दुखों के गर्त में गीर जाता है।                                                                  दोस्तों यह कहानी कैसी लगी दो शब्द जरूर लिखें और अपने स्वजनो को शेयर करें। धन्यवाद  लेेेखक-भरत  गोस्वामी

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