BAKTI KI SHAKTI भक्ति की शक्ति A RELIGIOUS STORY

हमारे इस पावन धरती पर ऐसे ऐसे दानवीर ,सूरवीर
  , और बुद्धिमान व्यक्ति हुए हैं।जिन्होने अपनी भक्ति की शक्ति से भगवान को भी मात दे दिया है।ऐसे ही एक सूरवीर राजा बलि की एक अद्भुत दास्तान का वर्णन इस कहानी में किया गया है।आशा है यह प्रसंग आप लोगों को पसंद आयेेेगा।                                                                                       राजा  बलि एक अद्भुत दानवीर सूरवीर और बुद्धिमान व्यक्ति थे जिन्होंने अपने कार्य काल में बहुत से ऐसे कार्य किए जिससे उनकी प्रजा सुखी रह सके । राज पाट को कुशलता से देखने के बाद उनकी एक और दिन चर्या  थी जिसके चलते उनका नाम परम दानवीर के श्रेणी में आने लगा था। उनकी ख्याति चारों ओर फैली हुई थी। सुबह गंगा स्नान कर के पुजा अर्चना के बाद वे दान दिया करते थे । आगंतुक खाली हाथ लौटकर या नाराज हो कर ना जाए इसका विशेष ध्यान रखा जाता था।  ऐसा करते करते बहुत दिन बीत गए।                        राजा बलि के मन में अभिमान घर करने लगा। उन्हें  ऐसा लगने लगा कि मेरे  जैसा दानवीर  पृथ्वी पर कोई  पैदा नहीं हुआ है।  उनकी ख्याति इन्द्र लोक तक पहुंच गई । देवताओं को यह भय सताने लगा कि अपने ख्याति प्राप्त  कृत्य के फल  से वो हमारी पदवी ना छीन ले। इसी  चिंता से मुक्त होने के लिए देवता भगवान श्री हरि नारायण के यहां पहुंचे।और भगवान श्री हरि नारायण से प्रार्थना किया कि  "  हे प्रभु आप हमारी रक्षा किजीए। पृथ्वी पर एक ऐसा राजा हुआ है जो अपनी भक्ति की शक्ति से देव,दानव,गंधर्व सबको पिछे  छोड़ दिया है।हमको भय है कि कहीं वह हमारी पदवी ना छीन लें।इसके पहले आप हमारी रक्षा हेतु जो भी हो सके वो सबकुछ किजीए।हम सब आप की शरण में आए हुए हैं। "अब भगवान श्री हरि नारायण बडे़ असमंंजस में पड़ गये । राजा बलि भगवान श्रीहरि नारायण के परम भक्त थे ।                                               इधर देवता भी भगवान श्री हरि नारायण को अपना  अराध्य  मानते हैं ।  " मैं आप लोगों के लिए कुछ करूंगा । आप लोग  निश्चित होकर  जाइए।एक दिन प्रातः दान लेने वालों की कतार लगी हुई थी। अन्त में एक किसोर खड़ा था जो  देखने में ऋषि कुमार लग रहा था। राजा बलि अपने नित्य पृवत्ति के अनुसार सबको मनवांछित दान दें रहे थे।सब लोग बहुत खुश थे कारण अपने इच्छा के अनुसार दान प्राप्त हो रहा था।अन्त में एक ऋषि कुमार को देखकर राजा बलि कुछ सकुचाये ।उन्होंने  किसोर   बालक के मुख मंडल पर एक अजीब  तरह का तेज देखा ।और मन ही मन सोचा कि हो ना हो यह कोई साधारण बालक नहीं है। उन्होने बालक से मुस्कुराते हुए कहा " कहिए प्रभु आपको किस चीज की आवश्यकता आन पड़ी । आप निश्चित होकर अपनी इच्छा के अनुसार दान मांग सकते हैं। मैं उसे जरूर पूरा करूंगा। "                                                    ‌‌‌तब बालक ने कहा " अच्छा ,जो मांगूंगा वो मिल जायेगा । "  " हां हां जो मांगेंगे वो सबकुछ मिल जायेगा ।  "राजा बलि ने कहा। तब बालक रूपी भगवान श्री हरि नारायण ने कहा " मुझे कुछ ज्यादा नही चाहिए,आप हमें तीन पग  भूमि दान दें दिजीए।" राजा बलि मुस्कुराते हुए बोलें " आप मात्र तीन पग भूमि लेकर क्या करेंगे।" किसोर बालक ने हठ कर लिया "  नहीं  हमें और कुछ नहीं चाहिए केवल आप हमें तीन पग भूमि दान दें दिजीए। "   राजा बलि ने कहा " ठीक है आपको तीन पग भूमि मिल जायेगी ।आप चाहें तो और कुछ मांग सकते हैं।  चलिए  , चारों तरफ मेंरा ही साम्राज्य है आप जहां चाहे वहां अपनी तीन पग भूमि ले सकते हैं।" राजा बलि के इस बचन को सुनकर बालक  बहुत प्रसन्न हुए।और फिर उन्होंने ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌अपना आकार इतना बढाया कि  एक ही पग में सारी पृथ्वी नाप डाली । और दूूूूसरे  पग में आकाश नाप डाला।और तीसरे पग के लिए राजा बलि से कहा "आप तो कहते थे कि चारों तरफ मेंरा ही साम्राज्य है । लेकिन आपका पूरा साम्राज्य तो मेरा दो पग ही पुरा कर पाया ।मैं तीसरा पग कहां पूरा करू।"राजा बलि को समझने में देर नहीं लगी आज मेरे अहंकार की बली  हो ने वाली है।यह  किसोर कोई साधारण बालक नहीं है ।उन्होने विनय पुर्वक  कहा "प्रभु आप चिंता ना करें , आप मेंरा शरीर  नाप ले  ।"                           तब बालक रूपी भगवान श्री हरि नारायण ने कहा " ठीक है जैसी  आपकी मर्जी "यह कह कर भगवान श्री हरि नारायण ने अपना तीसरा पग उनके मस्तक  पर  रख दिया जिसके भार से राजा बलि  पाताल लोक पहुंच गए। तब भगवान श्री हरि नारायण ने अपना असली रूप का दर्शन  कराया ।और कहा "राजा बलि आप अनंत काल तक राज करोगे । और अन्त में आपको मेरा लोक प्राप्त होगा। मैैंआपसे और आपकी  भक्ति से प्रसन्न हूं । आप कोई वर मांगो " तब  राजा बलि ने कहा "प्रभु मैं आपसे क्या मांगू मैं तो  हमेशा किसी ना किसी को  देते आया हूं  कभी किसी से कुछ मांगा नहीं । फिर भी मैं आपकी इच्छा का अनादर नहीं करूंगा ।आप देना ही चाहते हैं तो   आप मेरी एक इच्छा पूरी कर दिजीए। यह बालक रूप  मुझे बहुत पसंद हैं।मैं बस इतना चाहता हूं कि मैं जब सोकर उठूं तो इसी रूप का दर्शन  करूं ।" अब भगवान श्री हरि नारायण को मजबूूूरन" तथास्तु " कहना ‌पडा।  उनको  समझते देर नहीं लगी कि आज देवताओं की मदद मुझे भारी  पड़ी । राजा बलि  जिस शयन कक्ष में सोता हैै। उसके बतीस  दरवाजे  है । अब मुझे इसी रूप में बतीस दरवाजे पर अनंत काल तक खड़ा रहना पड़ेगा।                                                                             दोस्तों आप को यह कहानी कैसी लगी । comment box में दो शब्द जरूर लिखें । और अपने स्वजनो को शेयर जरुर करे धन्यवाद ।लेखक--भरत गोस्वामी

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