Wo DUS DIN वो दस दिन A SOCIAL STORY


मां बाप एक ऐसे अनमोल हीरा है ।जिनका आंकलन स्वंय  ईश्वर नहीं कर सके  तो उनका आंकलन मनुष्य क्या कर पायेगा ।ऐसे ही एक मां बाप की कहानी को दर्शाया गया है।                                       
एक गांव में रहने वाला व्यक्ति अपने छोटे भाई, पत्नी और तीन बच्चों के साथ खुुुशी खुशी    जीवन  बीता रहा था। लेकिन यह खुशियां ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाई । उसके चचेरे परिवार वालों ने उसे  इस कदर परेशान किया ,कि वह सारी दुनियादारी छोड़ कर भाग गया । अब घर  की सारी जिम्मेदारी  छोटे भाई महेंद्र के कंधे पर आ गई।उसने भाई  को ढूंढने की बहुत कोशिश की पर  भाई का कही  पता  नही चल सका ।  महेंद्र ने अपनी जिम्मेदारी बहुत बढ़िया से निभाया।वह भाई के बच्चों     को बड़े ही प्यार से पालने लगा।                                       चन्द  महिने बीते ही थे कि एक दिन उसके यहां एक पत्र आया।जो फौज से था। पत्र पढ़ कर महेंद्र के खुशी का ठिकाना ना रहा। भाई  राजीव को जबरजस्ती  फौजियों ने  ले जाकर  फौज में भर्ती कर लिया था ‌। कुछ दिन बाद जब वह पहली बार घर आया तो पुरे  गांव में  खुुुशी की लहर दौड़ गई।उस गांव का वह पहला फौजी था ।उसके बाद तो  गांव में    कई   फौजियों की  बढ़ोतरी  हुई। राजीव ने अपनेेेे चचेरे परिवार को भी अपने खुशी में शामिल किया और बड़े ही धूमधाम से भगवान  सत्य नारायण  की पूजा  किया । कुछ दिनो बाद उसने अपने भाई महेंद्र  की शादी  बड़े ही धूमधाम से  किया। और  खुशी से अपना जीवन यापन करने लगा। एक दिन सरकार ने उसे सरकारी निवास  दिया ।  पत्नी बिजया देेेेवी और बच्चों के साथ वह सरकारी निवास में रहने लगा।                                एक दिन किसी आवश्यक कार्य के चलते  राजीव  के बड़े लड़के  विरेन्द्र को अपने पिता  राजीव से  मिलने की जरूरत पड़ीं ।उसे उसके पिता जी का साइट   मालूूम  था ।उस दिन उजली रात थी । विरेन्द्र  बड़ी मुश्किल से अपने पिता के यहां पहुुुचा। आवश्यक बातें करने के बाद उस का ध्यान वहां के वातावरण पर पड़ा। दो कदम बाद ही सांपों का मेला लगा हुआ था। पचासों सांप  आपस में  लड रहे थे । सुनसान जगह पर एक   सांप दिखाई दे जाए तो आदमी की हालत खस्ता हो जाती है । वहां तो पचासों का तांता लगा हुआ था । आखीरकार उसने अपने पिता से पूछ ही लिया । "पिताजी आप ऐसे  माहौल में इतना   शांत कैसे रह लेते हों ,आप को डर नहीं लगता।"  उसके पिता ने कहा "  नहीं बेटा डर कैसा ,वो अपना  काम कर रहे हैं मैं अपना काम कर रहा हूं।"उस दिन  विरेन्द्र को पिता  का महत्व समझ में आया । मौत के इतना करीब एक आदमी  इतना नार्मल कैसे रह सकता है।                                                                 कुछ दिन बाद  किसी काम के सिलसिले में बिजया देवी  को गांव जाना  पड़ा ।अब राजीव के कंधे पर  एक और जिम्मेदारी आ गई।  काम के साथ साथ बच्चों के खाने कपड़े का इंतजाम भी उसे ही करना था। उसने  बहुत अच्छी तरह से अपनी जिम्मेदारी निभाई । बच्चों को खाना खिलाने बैठा देता  और गर्म गर्म  रोटी जो धी  के   कटोरे में से डुबा कर   निकाल लेता और बच्चों की थाली में  डाल देता।जब बच्चे भर पेट खाना खा लेते तो उनसे कहता।     "  बच्चों चलो और रोटियां खाओ,  एक रोटी का एक रूपया, जितना पाकिट मनी चाहिए उतनी रोटी  खानी पड़ेगी । " बच्चो को खिलाने मे उसे इतना आनंद आता कि उसे लगता कि बच्चे खाना खा रहे हैं और पेट मेरा  भर रहा है।                                                             समय बीतता गया और एक एक करके उसने तीनों बच्चों की शादी  कर दी। विरेन्द्र अपनी बीवी को लेकर जहां काम करता था वहां चला गया  बहन शादी के बाद अपने घर चली गई।छोटा भाई रमेश अपने मां बाप के साथ रह रहा था।एक दिन  पैर के असहनीय दर्द  के कारण   राजीव  इस दुनिया से चल बसे । उनकी पत्नी बिजया देवी अपने छोटे बेटे रमेश  के साथ रहने लगी । दोनों बेटे अपने परिवार में ऐसे रम गए कि मां के  पास रहने  को किसी के पास समय नहीं था।दुर दूर तक उसे  अपना दिखाई नहीं देता। बड़ा लड़का विरेन्द्र जब भी छुट्टी आता तो वह बिजया देवी के पास ही होता था । धन्टो  मां का पैैैैर दबाते रहता और इधर  उधर की बातें करके  मां का दिल बहलाता।जब वह चला जाता तो फिर से बिजया देवी  के  जीवन में उदासी छा  जाती।                                          कुछ समय बाद  विरेन्द्र अपनी औरत के साथ छुट्टी आता है। औरत की तवियत  ठीक ना हो ने की वजह से वह  बिजया देवी के पास नहीं रह पाता है।  इसी  समय बिजया देवी  की तवियत कुछ ज्यादा ही खराब  हो जाती है और वह इस संसार से विदा हो जाती है। अब विरेन्द्र इस हादसे के लिए अपने आप को दोषी मानता है । मां के साथ बीताए हुए एक एक  पल  उसे याद आते हैं। मां के गोद में सिर रखकर घंटो तक सोते रहना ।इधर उधर की बातें करके  उसका मन बहलाना।   जिन्दगी के वो दस दिन वह कभी भूल नहीं पायेगा । जीन दस  दिन ने  उससे उसकी मां को छीना था ।                                                          दोस्तो कहानी कैसी लगी दो शब्द जरूर लिखें और अपने स्वजनो को शेयर जरुर करे । धन्यवाद         लेखक ----भरत गोस्वामी

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