Talak ek Shatru तलाक एक शत्रु SOCIAL STORY


एक ऐसे परिवार की  कहानी जो दिलोजान से प्यार करने वाले प्रेमी जोड़े को अलग करने में सफल हो गए। तलाक नाम का शत्रु उनके खुशियों पर ग्रहण लगाते चला गया।और दो दिलों को परिस्थितियों के हाथों अलग होने पर मजबुर कर दिया । उन्हें इस बात की कल्पना भी नहीं थी ।                               
दोपहर का वक्त,एक तरूण जिसका नाम उमेश है ‌। कोर्ट के प्रांगण मेें एक बृक्ष के नीचे  चबुतरे पर लेटा हुआ है । सुर्य की  किरणे पेड़ के झरोखों को छेद कर उमेश के चेहरे पर पड़ रहीं हैं ।उमेेश दिमागी थकान से चूर हो कर नींद के आधीन हो गया है।उसका साथी लंच टाइम में कुछ पेपर वर्क करने  गया हुआ है । थोड़ी ही दूरी पर मधु अपने पिता के साथ बैठी है, जो उमेश को एकटक घुुरते जा रही है ।  आज उसके केस की तीसरी तारिख है। रह-रह के उसके जेहन में उमेश के साथ  बिताए गए जीवन के कुछ अच्छे क्षण याद आ रहे हैं ।उसे अच्छी तरह याद है ।उस दिन उमेश फिरोजी रंग की कमीज और काले
 रंग की पेन्ट  पहने हुए थे ।                                                              उन्होंने मुझे तैयार हो ने को बोले "चलो आज कहीं घुम कर आते हैं"।मेरा घुमने का मन तो नहीं था। लेकिन मैं उनका दिल नहीं तोड़ना चाहती थी।" हां आती हूं ।" कहकर मैं कपड़े बदलने चली गई। कुछ  देर बाद जब मैं तैयार होकर आई तो उमेश के चेहरे को गौर  से देखा उनके चेहरे पर एक लम्बी मुस्कान थी।हम लोग घुमने निकल पड़े । फिर  ढेर सारी जगह पर गये । हमने एक कार  हायर कर ली थी। सफर में चलते चलते जब कभी मेरी  आंखें झपकी लेने लगती , तो मैं उमेश के कन्धे पर अपना सर रख कर सो जाती ।                                                             एक जगह कार रूकवा कर  उन्होंने कहा "चलो पहले कुछ खा लेते हैं फिर आगे बढ़ते हैं ।
बड़ी जोर की भुख  लगी हैं।और फिर उन्होंने मेरे पसंद का खाना मंगवाया ।गपशप करते करते हम लोगों ने खाना समाप्त किया । फिर हम लोग वहां से निकल पड़े । एक जगह हम लोग पहुंचे जहां नदी का किनारा था।पवन के मस्त झोंके  कई बार चेहरे से आकर टकराते ऐसा प्रतीत होता  जैसे किसी आनंद सागर में आ गये हो । फिर उनकी इच्छा हुई कि  कुछ देर हम लोग यहां बैठे ।हम लोग जहां बैठे थे वहां थोड़ी धुप थी।मैं उमेश से सट कर बैठी थी ।मैने देखा कि उमेश ने  बिना किसी झिझक के मेरे साड़ी का पल्लू अपने  सर पर ओढ़ लिया। कसम से उनका चेहरा देखने लायक था। उमेश उस वक्त किसी साउथ के हीरो जैसे लग रहे थे । मैं तो उनको देखते देखते ही रह गई जब तक  उन्होंने मुझसे नहीं कहा " चलो भाई घर नहीं चलना है क्या ,यही रहने का इरादा है क्या?.मैं अपने ख्यालों में इस तरह डुबी  हुई थी कि उनकी बातें सुन कर शरमा गई।मेरे मन में कई तरह के ख्याल उथल पुथल मचा रहे थे ।उनका चेहरा ऐसे दिख रहा था कि मैं मदहोश हो गई थी । और तभी उनके हाथ मेरे गालों को थपथपा रहे थे।फिर हम लोग घर के लिए  चल दिए ।घर आकर मैं मां के सेवा में लग गयी । मां का दवा वगैरह की जिम्मेदारी मुझे ही सौंपी गई थी।
                        मधु की तन्दरा जब टुटी  जब उसके पिताजी आवाज दे रहे थे ।"चलो बेटा लंच  का टाइम  खत्म हो गया है। कभी भी पुकार हो सकता है अन्दर चल कर ही बैठते हैं।"मधु झटके से उठ कर पिता जी के साथ चलने को तैयार हो गयी उसने एक बार उस ओर देखा ,जिस ओर उमेश सो रहे थे ।पर वह उस
वक्त वहां से उठ कर चले गए थे। फिर अगली तारीख मिली ।हम लोग अपने अपने घरों को लौट गए । जाते वक्त उमेश ने मधु के उपर एक नजर डाली ।उसने देखा कि मधु उसे ही देख रही थी ।मधु ने उमेश को देखा तो वह बहुत दुखी हो गई,कारण उसने उमेश के चेहरे को गौर से देखा था  उसका चेहरा  बहुत ही उदास था ।मधु को लगा  उमेश  शायद मेरे कारण  परेशान हैं। लेकिन मैं क्या करती, ये परेशानी भी तो उन्हीं के परिवार वालों ने खड़ी की थी।
                              आज चौथीं तारीख थी । लगता है उमेश हम लोगों के आने से  पहले ही अपने साथी के साथ  आ चुके थे ।मधु ने देखा  उमेश पहले से काफी उदास दिख रहे थे ।मधु को कुछ अच्छा नहीं लगा ,उसने ठान लिया कि आज कुछ भी करके मैं उमेश से जरूर मिलुगी ।लंच होते ही बहाना बनाकर मधु सबसे पहले उमेश से मिलती है।मधु कहती हैं । " देखो तलाक का फैसला आपके पिताजी और मां का था । तुम्हें तो खुश होना चाहिए।अब नई  नवेली दुल्हन मिलेगी ।मैं तुम्हें बच्चा न दे सकी । वो तुम्हें तुम्हारी  हर खुशी देगी ।मैं तुम्हें वह खुशी ना दे सकी इसका अफसोस तो मुझे रहेगा। यह भी सच है कि तुम्हारे प्यार को भुलाना इतना आसान नहीं है।मेरे उपर जो भी बीते मैं तुम्हारे खुशी के लिए सब सह लूंगी। तुम्हारी खुशी में ही मेरी खुशी है।इसी लिए मैं ने अपने परिवार वालों को आपके परिवार वालों को एक शब्द  नहीं बोलने दिया।"                                                        "मैं सब कुछ सह सकती हूं पर आपको कभी उदास नहीं देख सकती । पिछले दस महिनों में मुझ पर क्या बीती हैं ।मै ही जानती हूं।आपके मां बाप के वो तीखे और व्यंग भरे बोल अभी भी याद आते ही मेरी आत्मा कांप जाती है।देखो जो हुआ सो हुआ अब आपको दुसरो की खुशियों का ध्यान रखना होगा। आपको खुश रहना होगा ।"उमेश को नहीं रहा गयाऔर उसने अपने मन की भड़ास  निकाल डाली।"आखिर तुम्हीं बोलते जाओगी या मेरा भी कुछ सुनोगी । कुछ भी हो मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता।नही चाहिए हमें  बच्चा जो हम दोनों को अलग करने का कारण बन सके।"                                                                                  फिर आ गई वह अनचाही घड़ी जिसका इंतजार दो परिवारों को था।यह दोनों युगल उदास थे ।पर इनके परिवार वाले बहुत खुश थे।तलाक  मंजूर हो गया था ।उमेश उदास सा एक टक मधु  को  देखें जा रहा था।उधर मधु भी बेसुध हुए जा रही थी ।मधु के सामने ही उसकी दुनिया उजडते नजर आ रही थी।उधर उमेश का भी यही हाल था । तलाक नाम का शत्रु उसकी दुनिया उजाडने पर तुला हुआ था।उमेश किसी भी हालत में अपने आप को नही रोक पाया ।और दौड़ कर उसने मधु को अपने आलिंगन में ले लिया।थोडी देर बाद जब  उन्होंने अपने आप को अलग किया तो उनकी आंखें सजल थी ।    लेखक--भरत गोस्वामी
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