KARAM FAL कर्म फल (RELIGIOUS STORY)

मनुष्य के जीवन में कर्म  का बहुत महत्व है। मनुष्य जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल मिलता है ।यह सत्य घटना उन दिनों की है जब भगवान श्रीकृष्ण  द्वारिका में बिराजमान थे।इस घटना को पढकर यह ज्ञात हो जाता है कि अपने कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है । चाहे वह देवता हो या मनुष्य हो ।                                                       
एक दिन भगवान श्रीकृष्ण के परम शिष्य नारदजी अपने स्वामी नारायण रूपी भगवान श्रीकृष्ण से मिलने द्वारिका जा रहे थे । रास्ते में उन्हें

 धान के खेत दिखाई दिए । चारो तरफ हरियाली ही  हरियाली छाई हुई थी।धान की फसल पकने ही वाली थी। एक कतार में धान की झुकी हुई बालियां नारद जी का मन मोह रही थी। वे इतने मंत्र मुग्ध हो
गये कि , उन्हें यह भी भान न रहा कि यह दुसरे का खेत है। उन्होंने धान की पांच बालियां भगवान श्रीकृष्ण को दिखाने के लिए तोड़ लिया । उन्हें ऐसा लगा कि भगवान श्रीकृष्ण देखेंगे तो खुश हो जायेंगे।जब  वे भगवान श्रीकृष्ण के सामने पहुंचे तो उन्होंने भगवान को पांचों बालियां दिखाई और कहा " देखिए प्रभु मैं आपके लिए क्या लाया हूं। मैं तो आनंदित हो गया ।  आप भी देखेगे तो खुश हो जायेंगे।"                              भगवान श्रीकृष्ण ने कहा "देख रहा हूं नारद पर यह सही नही है । यह एक अपराध है । किसी को बिना बताए उसका कुछ भी लेना पाप है ।जाने या अनजाने  में  हुआ अपराध तो अपराध है इसका प्रायश्चित तो करना ही पड़ेगा।"  नारद जी स्तब्ध रह गये ।और उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा "प्रभु बात तो बिलकुल सही है ।गल्ती तो हो ही गयी
 है। प्रभु इसके प्रायश्चित के लिए मुझे क्या करना होगा। "   प्रभु बोले "तुम्हें उस किसान के यहां नौकरी करनी पड़ेगी । जब तक तुम्हारा यह पाप पुरी तरह  कट नही जाता । तुम्हें संधारण आदमी के भेष में रहकर उसके वह सारे काम करने पड़ेंगे जो वह चाहेगा ।और जब तक तुम्हारा  पाप पूरी तरह से  कट नही जाता तब तक तुम्हें वहीं रहना  होगा।
                          "जो आज्ञा प्रभु " कहकर नारदजी उस किसान के यहां जाकर काम मांगते हैं।जांच पड़ताल के बाद किसान उन्हें  गौसाले में नौकरी देता है ।एक दिन किसान उन्हें खेत की रखवाली के लिए   भेजता है । रात को जब वे खेत की रखवाली कर रहे थे। कुछ चोर आकर खेत को काटने लगे  । नारद जी से नहीं रहा गया और वह जोर से हंसने लगे । एक चोर का ध्यान उनकी तरफ गया। उसने सब चोरो को कहा "रूको  रे रूको  कोई यहां है मैंने उसके हंसने  की आवाज़ सुनी है । " उन्हे  फिर से हंसने की आवाज आई  ।  सब मीलकर  वहां पहुंचे जहां नारदजी हंस रहे थे। और चोरो में से एक ने पूछा " आप कौन हैं और इस तरह क्य़ो हंस रहे हैं।" नारद जी ने कहा "भाई मैं नारद हूं ,  मैं इस लिए हंस रहा था कि  किसान से पुछे बिना मैंने पांच बालियां ले लिया तो मेरा ये हाल हो रहा है ।आप लोग पूरा खेत ले जा रहे हो तो आप लोगों का क्या  हाल होगा।  "                                  चोरो को जब  नारदजी की बात समझ  में आई तो सब मीलकर नारदजी के कदमों में गीर पड़े।" प्रभु हम नादान है हमसे गल्ती हो गई  ।इस पाप से  बचने का कोई मार्ग बताइए।" नारद जी ने कहा " गलत तो आप लोगों से हो ही गया है पर यदि इसको  थोड़ा कम करना हो तो काटी हुई फसल को किसान के गौसाले तक  पहुंचाना होगा। सबने मिलकर फसल को किसान के गौसाले तक पहुंचा कर   भाग लिया।सुबह जब किसान ने देखा तो बोला "अरे मुर्ख मैंने  तुम्हें रखवाली करने के लिए भेजा था।और तुमने कच्ची फसल  को कटवा कर रख दिया।"और नारद जी को बहुत खरी खोटी  सुनाई।                     कुछ दिन बीता  गंगा स्नान का त्योहार  आया  ।किसान ने अपनी औरत के साथ नारदजी को गंगा स्नान के लिए भेजा । रास्ते में चलते चलते नारद जी को मां गंगा  एक गड्ढे में दिखाई दी जो पापीयों के डर  से आकर वहां छुपी हुई थी। नारदजी को लगा क्यो न हम  किसान की औरत  को यही गंगा स्नान करा दे।यह सोच कर नारद जी ने किसान की औरत से कहा "देखो जी आप यही स्नान करो  आगे जाने से कोई फायदा नहीं है। " किसान की औरत सोची यह   मुर्ख मुझे उल्लू बना रहा है । इस लिए उसने नारदजी की एक ना सुनी ।और सब जहां स्नान को जा रहे थे । वहीं चली गई ।   घर आकर उसने अपने  पति से शिकायत की आपने  कैसा आदमी गले लगा दिया ।सब गंगा स्नान कर रहे हैं यह मुर्ख कह  रहा है कि गड्डे में नहा लो। तब किसान ने नारद जी को बहुत खरी खोटी सुनाई।                                                       कुछ दिन बाद काली पूजा का  त्योहार आया किसान ने बकरा  चढ़ाने की मन्नत मांग रखी थी ।सब लोग वहां जमा हो गये थे ।मां काली की पूजा हो रही थी बकरा जोर जोर से चिल्लाए जा रहा था । नारदजी उसकी बात सुन रहे थे। नारद जी ने बकरे से कहा "खाले भाई जो मिल रहा है । नहीं तो वह भी नहीं मिलेगा । ये अलग बात है कि जब  तुमने किसान को  काटा था तो माल पुआ खिलाया था और यह तुमको केवल चने खिला कर काटने जा रहा है । नारदजी की बात को  किसान का कोई आदमी सुन रह था ।उसने किसान को  सारी बातें बताई जो उसने नारदजी से सुन रखी थी । किसान आग बबूला हो गया।और उसने डंडा लेकर नारदजी को दौड़ा लिया।नारद जी भागते भागते भगवान श्रीकृष्ण को स्मरण किया   ।भगवान श्रीकृष्ण प्रगट हुए  ।और उन्होंने नारदजी को बचा लिया  । भगवान श्रीकृष्ण को देखते ही वहां जमा भीड़  के सब लोग भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में गीर पड़े।तब भगवान श्रीकृष्ण ने किसान और उसके साथियों से कहा "देखो  तुम लोग बहुत बड़ी भूल करने  जा रहे थे । यह कोई साधारण आदमी नहीं है । ये मेरे परम शिष्य नारद है। इनसे एक भूल हो गई थी ।जिसके कारण इन्हें किसान के यहां नौकरी करनी पडी । इन्होंने खेत नहीं कटवाया था। खेत च़ोरो ने काटा  था । इनके  सही ज्ञान देने की वजह से  चोरो ने काटी हुई फसल लाकर गौसाले में रख दिया।और जब ये किसान की औरत को गंगा स्नान  के लिए ले जा रहे थे तो सचमुच गंगा उस वक्त  गड्डे  में बैठी हुई थी ।और तीसरी बात  किसान पिछले जन्म में बकरा था  और बकरा पिछले जन्म में सेठ था  उस वक्त सेठ ने माल पुआ खिला कर काटा था और किसान उसे केवल चना खिला कर  काटने जा रहा है यही बात वह चिल्ला चिल्ला कर कह रहा था तो नारद उसी के बात  को समझा रहे थे।"                             दोस्तो यह कहानी आप को कैसी लगी दो शब्द जरूर लिखें और अपने स्वजनो को शेयर जरुर करे । धन्यवाद ।  लेखक--भरत गोस्वामी

Comments

  1. बहुत ही आनन्ददायी और अच्छी सीख देने वाला है।

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