नारद जी का अभिमान भंग (a religious motivational story)

मनुष्य  ईश्वर की सबसे सुंदर रचना है।इसने अपने कर्म से भगवान को भी कुछ सोचने को मजबूर कर दिया है।इस कहानी में एक भक्त नेअपने कृत्य के चलते भगवान को खुश कर दिया है।                                 
अभिमान मनुष्य हो ,दैैैत्य हो, दैव हो सबके लिए हानिकारक होता है। जो किसी को भी विकास की तरफ नहीं बल्कि विनाश की तरफ ले जाता है।अक्सर  देखा गया है कि अभिमान औरों से पहले खुद को मिटाता है।                                                              एक बार नारदजी पृथ्वी भ्रमण के उद्देश्य से पृथ्वी पर विचरण कर रहे थे। विचरण करते करते उन्होंने विचरण का खुब आनन्द लिया।विचरण के दौरान ही उन्होंने एक किसान को देखा जो कड़ाके की ठंड मे ठिठुर ठिठुर कर खेत में हल चला रहा था।हल  चलाते चलाते वह किसान बीच बीच में भगवान श्रीकृष्ण का जयकारा लगाने लगता। तो कभी जोर जोर से जय राम जय राम की रट लगाने लगता।                     यह देेेेखकर नारदजी को बड़ा आश्चर्य हुआ कि यह कैसी भक्ति, भक्ति या मजाक  ना जयकारा ही  ढंग से लगा रहा है,ना ढंग से जाप ही कर रहा है।नारद जी को जोर से हंसी आ गई। उन्होंने अपने मन मे कहा भक्ति तो मेरी है सदैव श्री नारायण  का ध्यान करता हूं।यह सोच कर नारदजी को अभिमान हो गया कि मुुुझ  से बड़ा भक्त अब इस संसार मेें कोई नहीं हो सकता। मैं प्रभु के  सबसे निकट और सबसे प्रिय भक्त हूं।इसी अभिमान से चूूर वह चले जा रहे थे।                                      जब वह भगवान नारायण के समीप पहुंचे तो अति प्रसन्न मुद्रा में थे। तब श्री नारायण ने नारदजी से पुछा "नारद बड़े प्रसन्न लग रहे हो। कहां से घूम कर आ रहे हो  । कुछ मुझे भी बताओगे,या सारा आनंद तुम्हीं उठा लोगे ।"नारदजी ने कहा " प्रभु मैं आज बहुत प्रसन्न हूं। मैं पृथ्वी भ्रमण के लिए गया था। भ्रमण के दौरान ये महसूस हुआ कि मैं आपका अनन्य भक्त हूं।क्योकि मेरे टक्कर का कोई  भक्त दिखाई नही दिया।" भगवान श्री नारायण बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने नारदजी से पुछा" नारद आपने क्या क्या देखा।"तो नारदजी बोले"प्रभु मैंने बहुत कुछ देेेखा ।"और सब कुछ बता ने    के बाद उन्होंने किसान के बारे में बताया। भगवान श्री नारायण मन-ही-मन

समझ गये कि नारद को भक्ति का  अभिमान हो गया है।इनका अभिमान भंग करना बहुत जरूरी है।                     प्रभु मुस्कुराते हुए नारद जी से कहा"नारद मेरा एक काम करना है यदि उस काम को इमानदारी से करोगे तो मुझे बहुत खुशी होगी ।"नारदजी ने कहा "अवश्य प्रभु मैं आप के खुशी के लिए कुछ भी कर सकता हूं।"तब प्रभु श्री नारायण ने दूध से भरा एक कटोरा मंगवाया और नारदजी को देते हुए कहा"नारद तुम्हें यह दूध का कटोरा पचास कदम तक ले जाना है और वहां से वापस यही आना है ।इस  के दौरान एक बुन्द दुध नही गीरना चाहिए।नही तो मुझे खुशी नही मिलेगी।"नारदजी बोले"आप आज्ञा दिजीए प्रभु यह कौन सी बड़ी बात है।मै इसका ध्यान रखुगा ।"यह कहकर नारदजी पचास कदम के लिए चल पड़े और पचास कदम  चल कर वापस आ गये। वे बहुत खुश थे कि काम के दौरान एक बुन्द दूध नहीं गीरा ।  प्रभु श्री नारायण मुस्कुराए और  जोर जोर से हंसने लगे।                    तब नारदजी ने पूछा "प्रभु मुझसे  कोई भूल हुई है क्या , आपने जो कहा था मैंने इमानदारी से काम किया पर आप इस तरह जोर जोर से हंस क्यो रहे हो ।तब प्रभु बोले "नहीं नहीं नारद ऐसी कोई बात नहीं है। मैं  तो इस लिए हंस रहा था कि वाकई हर पल मुझे कोई याद  करने वाला तुम्हारे जैसा कोई भक्त नही है।दूध ले जाने से लेकर वापस आने तक तुमने मुझे कितनी बार याद किया।" नारद जी समझ गये। प्रभु जोर जोर से क्यो हंस रहे थे। मैं इस काम के दौरान प्रभु को एक बार भी याद नहीं कर पाया मैं तो इसी चिन्ता में डूबे हुए था कि कहीं एक बुन्द दूध न गीर  जाए ।अब आपकी हंसी का राज मेरी समझ में आ गया है । प्रभु आप की लीला को समझ पाना  किसी के बस की बात नहीं। आपने कितनी सरलता से  मेरे अभिमान को तोड़ डाला ।                                    मैं समझ गया प्रभु  मुझसे बहुत बड़ी भुल हो गई है। मैं किसान के कृत्य को छोटा समझ कर जोर जोर से हंसा था। मुझे उसकी सजा मिली । मेरे से बड़ा भक्त वह किसान है जो कड़ाके की ठंड मे ठिठुर ठिठुर कर भी,  अपना काम करते हुए भी आपका स्मरण कर रहा था । प्रभु धन्य है आप और धन्य है आपकी लीला ।     लेखक-भरत गोस्वामी                                  (   दोस्तों कहानी अच्छी लगे तो दो शब्द जरूर लिखें और दो दोस्तों को जरूर शेयर करे । धन्यवाद )

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