PYAR RADHA RANI KA प्यार राधा रानी का ।(एक प्रेम कथा)

ऐसा प्यार ना कभी हुआ ,ना ही फिर कभी होगा ।यह भगवान श्रीकृष्ण कि पहली और आखिरी प्रेम लीला थी।जो न कभी खत्म हुई ना कभी खत्म होगी। सदियां बीत जायेगी ,युग बीत जायेंगे  ,पर राधा कृष्ण का प्यार कभी कम ना होगा । वैसे तो सांसारिक पद्धति के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण की सोलह सौ  रानियां थी, पर राधा जी का प्रेम सबसे अलग था । राधाजी का प्रेम उस अथाह सागर के समान था। जिसका कोई अंत नही । युगों युगों  तक स्मरण रखें जाने वाले इन युगल प्रेमी राधा कृष्ण की इस प्रेम कहानी का एक   अंश प्रस्तुत करने जा रहे हैं ।                                      ‌‌‌‌‌‌                    असीम सुन्दरता की देवी राधा रानी अपने तरूण अवस्था में प्रवेश कर रही थी ।
उनके काले काले घुंघराले बाल,गोरे गोरे गालों पर  कुछ इस तरह शोभा दे रहे थे। जिसका वर्णन नही किया जा सकता है।उनके छोटे-छोटे हाथ, छोटे छोटे पैर,ऐसे बेसुध से पड़ते  , जैसे उन्हें मालूम ही नहीं कि सामने गढ्ढा है या उंचाई । चेहरे पर वह मासुमियत ,वह भोलापन जिसमें इतनी स्थीरता ,जैसे  किसी गहरे नदी के जल की होती है। स्वभाव इतना शांत की , जैसे सुबह पंछियों के कलरव के बाद भी वातावरण शान्त रहता है।
             यमुना नदी के किनारे ,कदम के पेड़ के  नीचे बैठे भगवान श्रीकृष्ण की बंशी की धुन से मोहित उनके पैर भगवान श्रीकृष्ण की तरफ बढ़ रहे है।बेसुध से चलते चलते राधा रानी जी के कदम भगवान श्रीकृष्ण के सामने आकर रुक जाते है।जब राधाजी की नजर  भगवान श्रीकृष्ण पर पड़ती है । तो वह मुर्तिवत हो जाती है । उन्हें यह भी ज्ञान नही रहता कि मैं खड़ी हूं या बैठी हूं।  बेसुध सी एक टक भगवान श्रीकृष्ण को निहारे जा रही है।ऐसे जैसे जिन्दगी में पहली बार इतना सुन्दर दृश्य देख रही हो । प्रकृति शान्त  होकर राधा रानी के इस कृत्य को देख रही है।
                          उधर भगवान श्रीकृष्ण का जब ध्यान टुटता है तो  सामने  राधा रानी जी को देख कर
आश्चर्य चकित हो उठते हैं। इतना सौम्य ,इतना सुन्दर रूप देख कर  पुलकित हो उठते हैं । और मुस्कुराते हुए कहते हैं "तुम कौन हो । यहां कब आई "  तब राधाजी मुस्कुराते हुए कहती है  "मैं राधा ,बरसाने की रहने वाली हूं ।यहां  गोकुल में अपने मौसी के यहां आई हूं। इस तरह दोनों कई पहर  तक बातें करते रहे । अब शुरू हुआ एक सिलसिले दार मिलन  का दौर,और कुछ इस तरह  बढ़ा की एक मिसाल बन गया ।इस तरह दोनों बातें करते , कभी कभी राधाजी अपना सिर  भगवान श्रीकृष्ण के कन्धों पर टीका देती।इस तरह जब भगवान श्रीकृष्ण को राधा रानी की याद आती तो अपनी बांसुरी को अपने होंठों से लगा लेते और राधा रानी बेसुध सी दौड़े चली आती ।उनका यह प्यार इतना निर्मल ,इतना पावन था जिसमें अपवित्रता और स्वार्थ  का स्थान  लेश मात्र भी नही था।           ‌                                                                          यह प्यार इस कदर बढा कि एक दिन  भगवान श्रीकृष्ण ने अपने मन में यह ठान लिया कि आज मैं यह जानकर रहुंगा कि मेरी रानीयो में सबसे ज्यादा प्यार कौन करता है । यह सोच कर उन्होंने अपने परम शिष्य को  नारद को याद किया और अस्वस्थ होने का बहाना बना कर लेट गये।नारद जी तुरंत हाजिर हो गये ।नारद जी ने भगवान श्रीकृष्ण को प्रणाम करके पूछा" भगवन आपने हमें कैसे याद किया । " "नारद मेरी तबियत ठीक नहीं है कुछ अच्छा नहीं लग रहा है। किसी वैद्य को बुलाओ । " नारद जी  "जो आज्ञा प्रभु "  ऐसा कहकर नारदजी वैध को लेने चले गए । यथा शीघ्र कई वैद्य आ गए पर सब मिलकर भी यह न जान पाए कि भगवान श्रीकृष्ण को हुआ क्या है। सब एक ही बात कहते " भगवन‌ आपका यह रोग हमारे दिमाग से परे है। हमारे समझ में कुछ नहीं आता।आप हमें माफ कर दिजीए।                                        नारदजी परेशान, करे तो क्या करें ।अपने प्रभु को इस अवस्था में नही देख सकते।आखिर तंग आकर उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा "प्रभु आप ही बताइए मैं क्या‌ करू ,मेरी समझ में कुछ नहीं आता। तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा" नारदजी आप  मेरे  प्रभु  शिव जी के पास जाओ वो  वैद्य राज है उनके पास इसका इलाज जरूर होगा।"नारद जी शिव जी के पास गये और  सारी बात बताई तो शिव जी ने कहा" ऐसी अवस्था का इलाज तो बहुत आसान है। भगवान श्रीकृष्ण की सोलह सौ रानीयां है यदि उसमें से एक रानी अपने चरण रज (पैरों की धूल)दे देेेवे तो प्रभु  स्वस्थ हो सकते हैं। नारद जी खुश होकर  रनिवास की तरफ चल देेेते है । उनके हाथ में एक कटोरा है जिसमें वह चरण रज लाने वाले हैं।

     ‌वहां जाकर नारदजी ने रानीयो से आग्रह किया कि  आप सब में से कोई एक रानी अपने चरण रज दे देती है तो भगवान श्रीकृष्ण स्वस्थ हो जायेंगे । उसमे से एक भी रानी चरण रज देने को तैयार नहीं हुई। उलटे यह कह कर भगा दिया कि जाओ हम चरण रज नही दे सकते।कारण प्रचलन के अनुसार हमने ऐसा किया तो हमें सौ कल्पो तक नरक  में वास करना पडेगा । और हम नरक गामी नही बन सकते। अब नारदजी और परेशान, चिंतित मन से भगवान श्रीकृष्ण के यहां पहुंचे।और अपनी सारी व्यथा सुनाई।भगवान श्रीकृष्ण ने कहा"आप बरसाने  जाओ वहां राधा जी से अपनी  बात कहो। " नारदजी  बरसाने जाते है और वहां जाकर  अपनी बात बताते हैं।

                  राधा रानी जी कहती है"  लाइए कटोरा मैं चरण रज देती हूं । भगवान श्रीकृष्ण के लिए तो मैं सौ   कल्प  क्या  अनन्त कल्पो तक नरक में वास करने केलिए तैयार हूं। "और अपना चरण रज नारदजी को देती है । नारद जी चरण रज लेकर भगवान श्रीकृष्ण के पास जाते हैं। भगवान श्रीकृष्ण के माथे पर तिलक लगाते ही भगवान श्रीकृष्ण स्वस्थ हो जाते हैं।उनके चेहरे पर एक लम्बी सी मुस्कुराहट फैल जाती है ।                                                             दोस्तों यही कारण है कि मां राधा रानी उनको सबसे प्रिय हैं। मेरी यह कहानी आपको अच्छी लगी तो हमें दो शब्द जरूर लिखिए और हो सके तो दो दोस्तो को शेयर किजिए । धन्यवाद

  लेखक--भरत गोस्वामी





Comments

Popular posts from this blog

MAA YASHODA KA VATASHALAYA PREM मां यशोदा का वात्सल्य प्रेम A RELIGIOUS STORY

JO BHI HOTA HAI AACHE KE LEA HE HOTA HAI जो भी होता है अच्छे के लिए ही होता है A MOTIVATIONAL STORY

PRABHU YESHU EK AADERSH प्रभु यीशु एक आदर्श एक सुविचार A GOOD THOUGHT