करिश्मा भगवान श्रीकृष्ण का ।(a motivational story)

इस कहानी का सार यही है कि जो कुछ करता है ,वह भगवान ही करता है।मनुष्य तो केवल निमित्त मात्र है।जो व्यक्ति अपने आराध्य के शरण में विश्वास रखताहै ,उसे उसके आराध्य का आशीर्वाद प्राप्त होते रहता है।
                 एक धनाढ्य व्यापारी रहता है । अपने आचरण एवं कुशल व्यवहार से वह सभी का विश्वास जीत लेता है। उसकी कार्य कुशलता से लोग उसे पसंद करते है।वह भगवान श्रीकृष्ण का परम भक्त रहता है। उसनेे अपने आप को भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में समर्पित कर दिया है।वह कोई भी काम को बहुत ही इमानदारी से करता है। इस लिए उसकी सम्पति दिन दुनी रात चौगुनी बढ़ती रहती है। ज़रूरत पड़ने पर वह दीन दुखियों की सेवा भी करता है। अनजाने में यदि कोई गलती  हो भी जाए तो वह न्याय संगत करने
की कोशिश करता है।और उसमे सफल भी होता है।एक दिन एक गरीब आदमी उसके दरवाजे पर आता है। और विनय के साथ हाथ जोड़कर कहता है " सेठ जी मेरी इज्जत बचा लिजीए , मैं बेटी के शादी के चलते इतना परेशान हूं । मैं अपना सब कुछ बेच कर भी उसके ससुराल वालों को खुश नही कर पाया । मैं बहुत परेशान हूं।कृपा करके मेरी मदद किजीए ।"

                ‌       व्यापारी उसे सान्तावना देता है और उसकी यथा सम्भव मदद करता है।वह अपने क्रिया-कलापों से हमेशा मां लक्ष्मी को प्रसन्न करना चाहता है।सोने से पहले वह भगवान श्रीकृष्ण से हमेशा प्रार्थना करता है,  हे भगवान  अपनी कृपा दृष्टि  सदैव हम पर और हमारे परिवार पर बनाये रखना। हमारी खुशियों पर किसी की नजर  ना लगे । हे प्रभु हमारी  और हमारे धन की रक्षा करना ।पर होनी को कुछ और  ही मंजूर था ।

               एक चोर जो चोरी करके अपने बच्चों का लालन-पालन कर रहा था। बड़ा परेशान हैं, कहीं भी ढंग की चोरी नहीं हो पा रही हैं।अब सब तरह से परेशान हो कर वह चोर भगवान श्रीकृष्ण के शरण में जाता है। और कहता है कि" हे भगवान कहीं भी ढंग की चोरी नहीं हो पा रही है, मैं बहुत परेशान हूं। अपनेबच्चों की परवरिश करने मुझे बहुत परेशानी हो रही है।अति दीन की तरह वह भगवान श्रीकृष्ण से विनती करता है कि हे भगवान मेरा मार्ग दर्शन किजीए और हमें अपने शरण में ले लिजीए।  भगवान श्रीकृष्ण उसके ह्रदय की वेदना को सुनते है,और उसे सपने में बताते हैं कि तुम यहां जाकर चोरी करो, तुमको वहां से इतनी सम्पति  मिलेगी कि तुम्हें दोबारा चोरी करने की नौबत नहीं आयेगी ।और उसे उसी   व्यापारी के यहां चोरी करने को उकसाते हैं, जो व्यापारी प्रतिदिन भरोसा करके सोता है कि भगवान श्रीकृष्ण उसकी और उसके धन की रक्षा  करेंगे।

                 ‌‌‌चोर जाकर उसी व्यापारी के यहां चोरी करता है।और बहुत सारा धन पाता है।मनही मन वह भगवान श्रीकृष्ण को धन्यवाद देता हैऔर कहता है कि" हे भगवान मैं अब कभी भी चोरी नहीं करूंगा ,  प्रभु आप बहुत ही महान हो ,आपने हमारे जैसे दीन  व्यक्ति की ह्रदय वेदना की पुकार सुन ली । अब मैं इसी धन का सदुपयोग कर के अपने परिवार का लालन-पालन करूंगा।और दीन दुखियों की सेवा करूंगा।

उधर वह व्यापारी सुबह उठता है तो देखता है कि उसका सब कुछ चोरी हो चुका है। उसकी सारी दुनिया ही लूट चुकी है।वह भगवान श्रीकृष्ण को कहता है "हे भगवान ये क्या हो गया, मैंने तो कभी किसी का बुरा नही किया ,फिर ऐसा कैसे हो गया।हमारी सारी गृहस्थी चौपट हो गई।हम कहीं के नहीं रहें प्रभु आप पर भरोसा नहीं करें तो किस पर करें। हे प्रभु ये कैसे हो गया,आप हमारा मार्गदर्शन किजीए , हमारी समझ में कुछ नहीं आता,क्या करें क्या ना करें।"
भगवान श्रीकृष्ण को उस व्यापारी पर दया आती है, कुछ ही समय के बाद दरवाजे पर दस्तक होती हैऔर व्यापारी घबड़ाए हुए मुद्रा में दरवाजा खोलता है। और देखता है कि सामने उसका चिर परिचित दोस्त खड़ा है।जो कभी गद्दारी करके भागा रहता है।उसे देखते ही व्यापारी भड़क जाता है और कहता है "अब  यहां क्या लेने आए हो। चले जाओ ,मैं तुम्हारी शक्ल भी नही देखना चाहता हूं।" इतना सुनकर उसका दोस्त कहता है"मैं कुछ लेने नही देने आया हूं। मैं अपने कर्म का ही प्रायश्चित करने आया हूं।ये लो अपनी सम्पति  इसे चौगुना करके लौटा रहा हूं।अब तो मुझे माफ़ करदो। व्यापारी खुश हो जाता है , कुछ देर पहले जो भगवान श्रीकृष्ण को कोस रहा था । अब उन्हीं के  चित्र के  सामने खड़ा हो कर मुस्कुरा रहा है।
लेखक-
भरत गोस्वामी


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