एक बहू ऐसी भी । motivational story


हमारी  जिंदगी का बहुत बड़ा हिस्सा हमारी क्रिया-कलापों पर आधारित है। हम चाहे तो अपनी जिंदगी स्वर्ग या नरक बना सकते है।ये सारी चीजें हमारे उपर आधारित है।ऐसी ही एक बहू की कहानी हम आपके  सामने लाने जा रहे है। आपने सुना ही होगा दुनिया गोल है। हर चीज घुम कर फिर वही आ जाती है। हमारी संस्कृति मे  एक चीज ऐसी भी हैं ।जिसे संजो कर रखा जाए तो जिन्दगी स्वर्ग के समान सुन्दर होगी।हमारी ये कहानी भी विश्व की सभी हमारी बहनों के लिए समर्पित है। मात्र इसका  अनुसरण करके हमारी बहनें अपने घर को स्वर्ग बना सकती है। -----------

एक सीधा सादा परिवार रहता है।घर  में  मालिक , मालकिन के अलावा उनके तीन बच्चे रमेश,भावेेश और माधुरी रहती है। मालिक गुुुुलाबचंंद कपड़े का व्यापारी रहता है। बहुत ही ईमानदार ,बहुत ही अच्छा स्वभाव वाला व्यक्ति रहता है।ठीक  उसी तरह उसकी पत्नी सबिता भी एक नेक, सुशील और धार्मिक विचारों वाली औरत रहती है।वह  नित्य पुुुुजा पाठ करने के बाद ही अपने नित्य कर्म  को करती है। उसने इस  छोटे से परिवार को  बहुत ही सुझ बुुझ से संभाल कर रखी है । बच्चों की पढ़ाई लिखाई चल रही है।घर संसार चलते चलते कुछ समय बिताता है ।रमेश अपनी पढ़ाई लिखाई  पुरा करने के बाद अपने पिता के कारोबार में हाथ बंटाता है। उसके पिता उसके इस कृत्य से बहुत खुश रहते हैं,और अपना लाड़-प्यार उस पर  न्योछावर कर देते हैं।------------------------------- एक दिन एक सज्जन रमेश की शादी का प्रस्ताव लेकर आते हैं। बड़े ही अच्छी तरह बातचीत के बाद रिश्ता की बात आगे बढ़ाने के लिए लडकी को देखने का वादा  लेकर चले जाते हैं। गुलाब चंद अपने बेटी और पत्नी को लेकर लड़की देखने जाते है। लड़की पुरे साजों श्रृंगार से पुर्ण होकर अपने होने वाले रिस्ते के बारे में चिंतित है। क्या जाने कैसे लोग हैं। मुझे पसंद करेगे या नहीं ।कई तरह की सोच उसके  मानस पटल पर घुम रहीं हैं।कुछ दिन बाद इंतजार की घड़ी खत्म हो गई। गुलाब चंद का आगमन होता है और वे लोग काफी समय तक एक दूसरे का परिचय आदान प्रदान कर रहे हे। लड़की ससुराल पक्ष के लोगों को पसंद आती है ।सबने  खाना  वगैरह मिल कर खाया , खुशियां मनाई। दोनों पक्ष बहुत खुश हैं, रिश्ता तय हो गया।

सब अपने अपने घर वापस लौट गए ।दुल्हन भी खुशी खुशी अपने घर चली गई,मन में एक नई उम्मीद,एक नया सपनों का संसार उसके मानस पटल पर घुम रहा था।मन ही मन वह फुले नहीं समा रही थी। जिस तरह की कल्पना वह कर रही थी,उसी तरह का माहोल उसे दिखाई दे रहा था। दोनों पक्ष तैयारी में जोर सोर से जुटे हुए थे । अब आ गई शादी कि वह घड़ी जिसका सबको इंतजार था।धुमधाम से ,बाजे गाजे के साथ दोनों पक्षों ने मिलकर शादी की रस्में पुरी किया। पहली बार अपने पति का दिदार करके मनोरमा बहुत खुश थी ,कारण वह जैसा चाहिए वैसा राजकुमार उसे मिल गया था।वह अन्दर ही अन्दर बहुत खुश थी। उसकी सहेलियां उसके दुल्हे की बहुत तारीफ कर रही थी।दुल्हे के साथ हंसी की ठिठोली कर रही थी।चारों तरफ खुशी का माहौल बना हुआ है ।इन सब खुशियों के संग रस्में पूरी होती है,अब आती है बिदाई की रस्म , पुरे साजों समान के साथ कन्या की बिदाई होती है।सब बाराती बीदा होते हैं।

घर की रस्म पूरी होने के बाद शुरू होती है एक नव बिबाहिता की जिंदगी।घर में सभी खुश हैं। एक बहू का आगमन हुआ है । घर में तरह-तरह के मिठे पकवान बने हैं।सब लोग खुश हैं, चारों तरफ खुशियां ही खुशियां है।घर आनंद से भरा है। गुलाब चंद मन-ही-मन भगवान को धन्यवाद देता है ।इतना बड़ा काम उन्हीं की कृपा से बिना ब्यधान के पुरा हुआ है।अब
आती है वह घड़ी जिसका इंतजार हर दुल्हन को रहता है ।बहु मनोरमा के कदम उसके सास के कमरे की तरफ बढ़ते हैं।सासु मां के पांव छू कर वह नयी जिन्दगी की शुरुआत करना चाहती है। सास सबिता उसे आजीवन  सौभाग्यवती रहने का आशीर्वाद देती है। उसके बाद उसके कदम अपने पति के कमरे की तरफ बढ़ते हैं। जहां पति देव उसका बड़ी  बेसब्रीसे इंतजार कर रहे हैं।पति के पांव छू कर आशीर्वाद लेती है। पति रमेश उसे उठा कर अपने आगोश में ले लेता है।धन्टो  प्यार  भरी बातें करने के बाद दोनों अपनी दुनिया में खो जाते हैं।
सुबह उठने के बाद नित्य कर्म से निवृत्त होकर पुजा पाठ करने के बाद वह सासु मां के पांव छू कर आशीर्वाद लेती है।रोज सासु मां के पांव दबाती है । फिर अपने पति के पांव दबाती है।रमेश के मना करने के बावजूद वह पति की सेवा करके पति सुख का परम आनंद लेती है।अपने  अच्छे स्वभाव से पुरे परिवार वालों को खुश करके सबका प्यार पाती है।
लेखक-भरत गोस्वामी

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