खुद हनुमानजी ने बचाई अपने सेवक की जांन ।---a motivational story

खुद हनुमानजी ने बचाई अपने सेवक की जांन, इस सत्य कथा में केवल स्थान, और पात्र के नाम  बदले गए है। श्रद्धा है तो सब कुछ है।मानो तो देव‌ , नही तो पत्थर  ।ये कहानी एक प्रेरणादायक कहानी है ।जिसे पढ़ कर मन श्रद्धा से भाव विभोर हो उठेगा ।_














_हर साल की भांति इस साल भी हनुमानजी के मंदिर में कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव मनाया जा रहा था। मंदिर में सेवक गण अपनी अपनी सेवा में लगे थे।कोई पताका लगा रह था,तो कोई साफ-सफाई में लगाथा। कोई फूल माला से मंदिर को सजा रहा था। लाउडस्पीकर पर भक्ति गीत बज रहे थे। लोग भक्ति गानों का आनंद ले रहे थे । इतने में मंदिर का मुख्य सेवक दामोदर वहां आया,और उसने एक सेवक विवेक से कहा "एक हार और श्रीफल हनुमानजी को चढ़ा दो। "विवेक कोई काम में व्यस्त था।उसने उमेश से हार और श्रीफल चढाने को कहा।उसने भी किसी से वहीं काम करने को कहा।सब एक दूसरे को कहते गये ,किसी ने हार और श्रीफल नही चढाया।
 अब हनुमानजी नाराज हो गए ।सबकुछ अपने आप बंद,कही  लाइटींग बंद तो लाउडस्पीकर बंद।सब सेवक घबरा गए । ये क्या हो गया । नगर के सब इलेक्ट्रीशियन अपना अपना दिमाग लगाकर थक गए,पर किसी का  दिमाग काम नही कर  कर रहा था। सेवक लोग उदास हो गए , अब क्या होगा ।  मुख्य सेवक दामोदर  परेशान होकर  हनुमानजी से याचना करने गया , वहां जाकर देखता है, किसी ने हनुमानजी को हार और श्रीफल चढ़ाया ही नही।वह विवेक पर भड़क जाता है। "आपने हनुमानजी को हार और श्रीफल नही चढ़ाया।जाइए जल्दी से हार और श्रीफल लाइए ।" ज्योही दामोदर ने हनुमानजी के गले में हार डाला ,त्योही  सब कुछ अपने आप चालू हो गया।
     लाइटींग जलने लगी, लाउडस्पीकर से गीत बजने लगा। ये  चमत्कार देख कर सब नगर निवासी  खुश हो गए।थोड़ा समय गुजरने के बाद वह घड़ी आ गई,जिसका सबको  इंतजार था। भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया। गीत, संगीत , संकृतन आदि से वातावरण भक्तिमय हो गया । लोगों को लगता था कि ,सचमुच भगवान का जन्म होने वाला है। सब भावविभोर होकर झुम रहे थे।सबने गीत,संगीत का आनंद लिया और प्रसाद लेकर अपने अपने घर चले गए।दो सेवक के अलावा वहां कोई नहीं था। रात्रि के दो या तीन बजे होंगे। सिताब सिंह और सुरेश समय गुजारने के लिए भगवान की आरती में मिले  पैसों को  गिनने लगे। कुछ देर बाद सुरेश ने सोचा कि ये होलीजन बेकार मे जल रहे है,इसे बुझा देना चाहिए। उसने नौ होलीजन के कनेक्सन छुड़ा दिए,जब दसवां कनेक्सन छुड़ाने लगा जो हनुमानजी के ठीक सामने था ,तो सुरेश को  करेंट ने पकड़ लिया।
            जब सिताब ने सुरेश को देखा तो कोई मदद करने के बजाय वह वेहोश हो गया। अब तो बचे हनुमानजी और सुरेश दोनों एक दूसरे को एक टक देख रहे थे। सुरेश मन ही मन सोच रहा था ।आज तो बचना मुश्किल है, चलो जी भर के हनुमानजी को देख लेते हैं।  फिर उसे एकाएक  मां वैष्णो देवी की याद आई।और उसका चेहरा खील उठा। "अच्छा है हनुमानजी,अब भैरव नाथ  जैसे मेरी  पुजा पहले होगी,बाद में आपकी पुजा होगी।" इतना कहना था कि  सुरेश के शरीर के रोंगटे खड़े हो गए ।   और  वह अपने आप नीचे गीर पड़ा ।उसको कुु्छ नही हुआ। उसने सबसे पहले हनुमानजी को धन्यवाद दिया।और अपने साथी सिताब  को पानी मारकर होश में लाया ।होश में आते ही सिताब सुरेश को पकड़ कर जोर जोर से रोने लगा। सुुुबह  होते ही यह बात पुरे नगर में फैल गई ।


सब हनुमानजी की जय-जयकार करने लगे ।इस तरह हनुमानजी ने खुद अपने सेवक की जान बचाई।

     लेखक--भरत गोस्वामी






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