जीवन दर्शन (सत्य कथा )
जीवन के कुछ सच्चे तथ्य को दर्शाती यह सच्ची कहानी आपको कड़वी जरूर लगेगी , लेकिन मानव जीवन का सही पथ इस कहानी में दिखाया गया है।
माथे का पसीना पोंछ कर राकेश राहत की सांस लेता है ।उसे अपना तारगेट पुरा करने में अभी काफी समय था । अपने सहकर्मी से बोल कर वह चाय पीने केंटीन चला गया।चाय पीके आने के बाद उसने अपना काम एक घंटा पहले ही पुरा कर लिया । इस बीच उसके कपड़े कितनी बार सुखे कितनी बार गीले हुए । लेकिन उसनेे कोई प्रतिक्रिया न करते हुए अपना काम ख़त्म किया ।ऐसे करते करते कई साल बीत गए। राकेश परिस्थितीयो से उलझता हुआ ,आगे बढ़ रहा था ।
वह कितना भी थका मादा होता, अपने पुत्र अंश को गोद में लेते ही उसकी सारी थकान फुर्र हो जाती ।फिर क्या ,अंश आगे आगे और राकेश पीछे पीछे फिर घंटों तक बाप बेटे की घुड़दौड़ होती ।इस बीच भागमभाग में यदि अंश कुछ शरारत कर बैठता तो राकेश की डांट पड़ती और उस डांट का असर अंश पर कुछ नहीं पड़ता,उल्टे अपना चार दांत वाला मुशकराता चेहरा दिखाकर राकेश को रिझाने की कोशिश करता । दौड़ते दौड़ते यदि कहीं गीर जाता तो हाथ गन्दे हो जाते फिर राकेश उसे हाथ पोंछने के लिए रूमाल देता तो अंश मुह पोंछने लगता । उसकी यह शरारत देखकर राकेश गुस्सा होने के बजाय उसे गले से लगा लेता ।ऐसा करते कराते कई साल बीत गए।अंश जवान हो गया। उसके शादी की चिंता राकेश को सताने लगी।और एक दिन उस की शादी धुमधाम से हो गई । कुछ दिन बाद ह्रदयघात से राकेश की पत्नी स्वर्ग वासी हो गई । राकेश के उपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा।वह कहीं भी उदाश बैठा रहता ।
उसको अपनी पत्नी मनोरमा के साथ बिताए दिनों की याद आती, दोनों घंटों पार्क में बांह मे बांह डाल कर बैठते ।गपशप करते ।फिर मंदिर जाते,और भगवान से प्रार्थना करते कि हे भगवान हमारे जीवन में सुख शांति बनाए रखना ।पर यहां तो एकदम उल्टा हो गया। कुदरत ने उसके साथ क्या मजाक कर दिया। राकेश की सारी खुशियां ही छीन गई।वह उदाश रहने लगा । कुछ दिन बाद पोते ,पोती हो गये ।राकेश अब बुढ़ा होने लगा था ।पत्नी के ग़म में वह इस कदर टूट चुका था कि,उसका शरीर साथ नहीं दे रहा था। इन्द्रियां बेकाबू हो गई थी । कहीं भी पेशाब कर देता, कहीं भी पैखाना कर देता ,उसे मालूम ही नहीं पड़ता।बहू परेशान हो गई , उसके तेवर बदल गये।उसने अंश से बोल कर किनारे में पार्टीशन देकर एक छोटा सा कमरा तैयार करवाया और राकेश को वहां सिप्ट कर दिया गया। वहीं पर उसको समय समय पर खाना पानी दिया जाता । जैसे एक जानवर को दिया जाता है। राकेश कभी अपने आप को कभी भगवान को को सता एक दिन इस बेदर्द दुनिया से हमेशा के लिए चला गया ।अन्तिम समय में उसे याद आये अपनी पत्नी मनोरमा के साथ बिताए गए कुछ खुशी के पल ,अंश के बचपन के कुछ पल जिसे देखकर वह बड़े सेबडेसे दुख को भुल जाता करता था ।उसकी आंखें दरवाजे की तरफ एक टक देखते देखते खुली की खुली रह गई। लेखक--भरत गोस्वामी
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